पाकिस्तान अपने सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान में विद्रोह झेल रहा है। ऐसे में वह अब इस इलाके में अमेरिका की एंट्री कराने का प्लान बना रहा है। पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने अमेरिका को माइनिंग लीज देने का प्लान बनाया है। इसका मकसद अरबों डॉलर के खनिज संसाधनों का खनन और साथ में बलूच विद्रोहियों के हमले को रोकना है।
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान की शहबाज सरकार और सेना का मानना है कि यदि अमेरिका इस क्षेत्र में निवेश करता है तो बलूच के हमले कम हो जाएंगे। और यदि हमले होते हैं तो अमेरिका ही बलूच विद्रोहियों से निपटेगा और अपने निवेश की सुरक्षा करेगा।
एक सैन्य सूत्र ने भास्कर को बताया कि सेना का मानना है कि अमेरिका की एंट्री मतलब सिर्फ डॉलर नहीं, ड्रोन भी होंगे। इससे विद्रोह को कुचलना आसान होगा। इस डील को लेकर अमेरिका के सेंट्रल एशिया मामलों की ब्यूरो के सीनियर अधिकारी एरिक मेयर ने बीते दिनों पाक सेना व सरकार के अधिकारियों से इस्लामाबाद में बैठक की है। इसमें डील फाइनल करने पर सहमति बनी है।
चीन से निर्भरता कम और अमेरिका से रिश्ते सुधारने की कोशिश में है पाक सेना
पिछले 5 वर्षों में पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ी है। 2019 से 2023 के बीच, पाक के हथियारों का लगभग 81% आयात चीन से हुआ है। साथ ही, पाक चीन पर लोन के लिए भी निर्भर है। रिपोर्ट के अनुसार बीते 3 वर्षों में विदेशों से लिए गए कुल लोन में से 72% लोन पाक ने चीन से लिया है।
चीन से बढ़ती दोस्ती व पूर्व पीएम इमरान खान के कार्यकाल के दौरान उनके बयानों के चलते पाक के रिश्ते अमेरिका से कमजोर हुए हैं। सेना इस डील के जरिए रिश्ते मजबूत करना चाहती है।
2040 तक चौगुनी होगी बैटरी मिनरल्स की मांग, अमेरिकी सेना सबसे बड़ी खरीदार
5 वर्षों में खनिजों की भू-राजनीति में बदलाव आया है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग से जुड़ा है। लिथियम, कोबाल्ट, तांबे जैसे बैटरी मिनरल्स की डिमांड 2040 तक चौगुनी होगी। अमेरिकी सेना इनकी सबसे बड़ी खरीदार बनकर उभरी है। उसके ड्रोन, टोही रोबोट और ऊर्जा-आधारित हथियार पूरी तरह बैटरी पर निर्भर हैं। विश्लेषक इलियास के मुताबिक, 2027 तक अमेरिकी सेना अपने गैर लड़ाकू बेड़े को पूरी तरह बैटरी से चलने वाले वाहनों में बदलने की योजना बना रही है।
पाकिस्तान ‘कॉपर का सऊदी अरब’ बनने की रेस में
पाकिस्तान के पास दुनिया के पांचवें सबसे बड़े कॉपर भंडार हैं। बलूचिस्तान का रेको डिक खदान दुनिया के सबसे बड़े अछूते सोना-तांबा संसाधनों में एक है, जिसकी कीमत 100 लाख करोड़ रुपए आंकी गई है। वहीं गिलगित-बाल्टिस्तान इलाकों में भी तांबे-सोने के भंडार हैं।
सेना यह दावा कैसे कर रही है कि बलूच विद्रोही अमेरिकी निवेश को निशाना नहीं बनाएंगे? इस सवाल पर विशेषज्ञ मुहम्मद इलियास कहते हैं कि चीन ने यहां से अरबों कमाने के बावजूद एक भी स्कूल-अस्पताल नहीं बनवाए। यहां के लोग अब बदलाव चाहते हैं। अमेरिका सही ढंग से आएं, तो स्थानीय विद्रोह नहीं करेंगे।
खनिज संसाधनों से भरपूर है बलूचिस्तान
पाकिस्तान की सरकार बलूचिस्तान से बलूचों को खदेड़ने के लिए बार-बार सैन्य कार्रवाई करती रही है। इस कार्रवाई की दो बड़ी वजह हैं। पहली- बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति, जो इसे दुनिया के कुछ सबसे अमीर स्थानों में खड़ा कर देती है।
दरअसल, यह इलाका पाक के दक्षिण-पश्चिम में है, जिसके क्षेत्रफल में ईरान और अफगानिस्तान की भी जमीनें शामिल हैं। यह 3.47 लाख वर्ग किमी में फैला है। इस हिसाब से यह पाक का सबसे बड़ा प्रांत है। देश का 44% भूभाग यहीं है, जबकि इतने बड़े क्षेत्र में पाक की कुल आबादी के सिर्फ 3.6% यानी 1.49 करोड़ लोग ही रहते हैं।
दूसरी, इस जमीन के नीचे मौजूद तांबा, सोना, कोयला, यूरेनियम और अन्य खनिजों का अकूत भंडार। इससे यह पाक का सबसे अमीर राज्य भी है। यहां की रेको दिक खान दुनिया की सोने और तांबे की खदानों में से एक है। यह चगाई जिले में है, जहां 590 करोड़ टन खनिज होने का अनुमान है। इसके प्रति टन भंडार में 0.22 ग्राम सोना और 0.41% तांबा है।
इस हिसाब से इस खान में 40 करोड़ टन सोना छिपा है। जिसकी अनुमानित कीमत 174.42 लाख करोड़ रुपए तक हो सकती है। इसके बावजूद यह इलाका पाकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है। पाकिस्तान ये बेशकीमती खदानें चीन को देकर अपनी किस्मत चमकाना चाहता है। उस पर 124.5 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, जो उसकी GDP का 42% है।