उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटों पर मतदान पहले चरण यानी 19 अप्रैल को होगा। लेकिन, आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि राज्य के 120 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां के लोग आज भी नेताओं को देखे बिना ही मतदान करते हैं। आजादी के बाद से शुरू हुई संसदीय परंपरा में आज तक कोई सांसद इन गांवों में वोट मांगने नहीं पहुंचा। यहां कनेक्टिविटी ना होने जैसी कई समस्याएं हैं। पर जब सांसद प्रत्याशी गांव में आते ही नहीं तो समस्या सुनाएं भी तो किसे।
केस 1:
नैनीताल के दुर्गम बेतालघाट ब्लॉक का जिनोली गांव। प्रधान अनीता देवी ने बताया, यहां 300 वोटर हैं। पोलिंग बूथ गांव से 5 किमी दूर है। कार्यकर्ता जिस पोस्टर और बैनर से प्रचार करते हैं। उसे देखकर वोट देते हैं।
केस 2 :
चीन सीमा से लगे बागेश्वर जिले की कमस्यार घाटी का कपूरी गांव। ग्राम प्रधान धनवंतरी राठौर बताती हैं कि लोगों ने आज तक गांव में सांसद नहीं देखा। यहां कई समस्याएं हैं, पर जब कोई आए तब तो समस्या सुनाएं।
मतदान करवाने एडवांस पोलिंग पार्टियां जाती हैं...
पहाड़ के दुर्गम गांवों में मतदान से एक दिन पहले ही पोलिंग पार्टियां पहुंच जाती हैं। मतदान केंद्र में ही रुकते हैं। भोजन स्कूल की भोजनमाता बनाती हैं। एक दिन पहले सभी मशीनें चेक की जाती हैं। मतदान कर्मियों को सख्त हिदायत होती है कि गांव में किसी व्यक्ति से किसी तरह की व्यवस्था में सहयोग नहीं लेना है।नैनीताल के दुर्गम बेतालघाट ब्लॉक का जिनोली गांव। प्रधान अनीता देवी ने बताया, यहां 300 वोटर हैं। पोलिंग बूथ गांव से 5 किमी दूर है। कार्यकर्ता जिस पोस्टर और बैनर से प्रचार करते हैं। उसे देखकर वोट देते हैं।
अल्मोड़ा-गढ़वाल सीट पर देश में सबसे कम मतदान
2019 लोकसभा चुनाव में देश में 50 सीटें ऐसी थीं, जहां मतदान 50% से कम हुआ था। इस सूची में 23वें स्थान पर अल्मोड़ा और 49वें स्थान पर गढ़वाल सीट थी। पौड़ी के जिलाधिकारी आशीष चौहान गढ़वाली बोली में मतदान जागरुकता के संदेश वाले पोस्टकार्ड लिखकर मतदाताओं को भेज रहे हैं।
इसलिए नहीं कर पाते प्रचार...
उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है। यहां प्रचार के लिए अधिकतम 15-20 दिन मिलते हैं। जबकि हर लोकसभा करीब 250 किमी लंबी है। ऐसे में प्रत्याशी चाहकर भी गांव-गांव नहीं जा पाते। यहां मतदान प्रतिशत भी हमेशा राष्ट्रीय औसत से कम रहा है।