• छात्रावासों की व्यवस्थाओं को लेकर जिला में उठ रहीं चर्चाएं,जांच की उठ रही है मांग
• अधीक्षकाओं की नियुक्ति की जांच है जरूरी
• खाद्यान्न सामग्री का क्रय जिन फर्मों से किया जाता है येसी फर्मों का नहीं है अता पता
निवाड़ी। छात्रावासों की व्यवस्थाओं को लेकर जो मुद्दा उठाया गया है, वह काफी गंभीर और समाजिक रूप से महत्वपूर्ण है। राज्य शिक्षा केंद्र के अंतर्गत संचालित छात्रावासों को लेकर निवाड़ी जिला में उठ रही चर्चाएं कई स्तरों पर चिंताजनक हैं।
छात्राओं की कम संख्या के बावजूद पूर्ण भुगतान की चर्चाएं हैं। आरोप हैं कि छात्रावासों में जितने छात्राएं वास्तविक रूप से रह रहीं हैं , उनकी संख्या कम है, लेकिन फिर भी पूरा बजट खर्च दिखाया जा रहा है।
फार्मेसी बिलों का संदेहजनक भुगतान पर सवालिया निशान हैं।
यह भी चर्चा में है कि किन फार्मेसी बिलों का भुगतान हो रहा है, और क्या ये सही हैं या नहीं , इस पर भी सवाल उठ रहे हैं । यह भी जोर पकड़े हुए है की अन्य खाद्यान्न सामग्री का क्रय भी जिन फर्मों से किया जाता है एसी फर्मों का भी अता पता नहीं है।
प्रति छात्रा बजट और सुविधाओं का असंतुलन को लेकर
यह भी कहा जा रहा है कि प्रति छात्रा को जो बजट मिलता है, उसके हिसाब से सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। यानी, बजट का सही उपयोग नहीं हो रहा है।
छात्रावासों व स्कूलों में छात्राओं की संख्या का मिलान किए जाने की मांग भी हो रही है।
छात्रावास की कुछ अधिक्षकाओ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाबजूद भी उन्हें पुनः छात्रावास अधीक्षका प्रभार सौंपा गया है , जो जिला भर में जन चर्चाओं में हैं जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
तीन साल के कार्यकाल के बाद अधीक्षकाओं को बदले जाने का प्रावधान है, लेकिन इस प्रक्रिया में भी पारदर्शिता की मांग की जा रही है। अधीक्षकाओं की नियुक्ति की जांच की मांग भी उठ रही है। येसी नियुक्ति जिला भर में सुर्खियों में हैं। जिले की कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि
एक जांच समिति गठित की जाए जो छात्रावासों की वास्तविक स्थिति की जाँच करे।
छात्रसंख्या, उपस्थिति, और व्यय का डिजिटलीकरण कर पारदर्शिता लाई जाए।
फार्मेसी बिल और अन्य भुगतान की नियमित ऑडिटिंग की जाए। वहीं कुछ समाजसेवियों का यह भी कहना है कि अधिक्षकाओ की पुनः नियुक्ति और बदलाव की प्रक्रिया सार्वजनिक की जाए । मध्य प्रदेश शासन का ध्यान अपेक्षित है।